Aankhe Darsh Abhilashi hai

About The Book

सृष्टि के सृजन से ही मनुष्य बड़ा प्यासा रहा है। ये प्यास इतनी बड़ी रही है कि मन हृदय और आत्मा तक भी इससे अछूते नहीं रहे। मनुष्य ही नहीं हमारे आस-पास की प्रकृति सूर्य चंद्र पृथ्वी आकाश पर्वत पाताल नदी झरने पशु-पक्षी जंगल मरुस्थल... सभी प्यासे हैं। आखिर ये प्यास कैसी है जिससे कोई भी विलग नहीं हो पाया? ये प्यास है प्रेम प्यास ऐसा प्रेम जिसे पाकर मनुष्य अपने अस्तित्व को खो देता है और समाहित कर लेता है अपने हृदय में अथाह को अनंत को। यह प्रेम मन में अभिलाषा उत्पन करता है अपने प्रियवर के दर्श की अभिलाषा। वह प्रियवर जो थाह से अथाह तक का सफर करवाता है...ये आँखें हमेशा 'दर्श अभिलाषी' बनी रहती हैं।
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