Aapki Tripta

About The Book

क्या मेरा आदर्शवाद या अपने सिद्धांतों पर टिके रहना सही था या फिर मैं पूर्ण अनैतिक थी -कुछ कह नहीं सकती। क्या स्त्री का यही धर्म है कि अच्छे-बुरे चाहे जैसे भी पति मिले जीवन भर उन्हीं के नाम की माला जपो; न पूछे तो भी? क्या मेरा प्यार अनैतिक था? मैं गलत थी? या इस उम्र में भी प्यार हो सकता है? क्या कसूर था मेरा? मेरे पति ने नहीं अपनाया और फिर इतना बड़ा पाप कि बाबा की मौत हो गई? क्या मैं किसी पुरुष से नहीं मिल सकती बात भी नहीं कर सकती? क्या नारी को जीवन में सुख भोगने का अधिकार नहीं है? क्या मैंने इतना बड़ा पाप किया कि बाबा सहन नहीं कर सके; क्या मेरा दूसरी शादी करना या दूसरे पुरुष के बारे में सोचना गलत था? या फिर मैंने पतिव्रता का धर्म नहीं निभाना चाहा होगा? यही सब सोचते हुए मैं अपने जीवन के शांतिमय खालीपन के चोले को उतार फेंकती हूँ और स्कूल के बच्चों को अपना समझ फिर नए जीवन की शुरुआत करती हूँ जहां मैं हूँ छोटे-छोटे बच्चे हैं। बस समाज से सिर्फ यही जवाब चाहती हूँ कि क्या सच में मैं इतनी बड़ी अपराधिनी थी?-आपकी तृप्ता
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