मैंने अपनी ओर से तर्क किया कि किसी भी परिस्थिति से घबड़ाकर अपना देश क्यों छोड़े कोई? देश में रहकर चुनौतियों और परिस्थितियों का सामना करना चाहिए। यानी भारत से प्रतिभाओं के पलायन के पीछे एक ओर जहाँ विदेशों की समृद्ध सुविधाएँ थीं, तो कहीं ना कहीं आरक्षण से योग्यता के पिछड़ जाने का भय भी। स्वयं मैंने भी आकाशवाणी के कार्यकाल में वह सब अनुभव किया। संघ लोक सेवा आयोग से राजपत्रित अधिकारी के रूप में चयनित होकर भी एक लंबे समय तक प्रोन्नति के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी, जबकि साथ के आरक्षित वर्ग के सहकर्मी प्रोन्नत होकर हमारे ही उच्चाधिकारी बन बैठे। तो, आरक्षण ने भारत में किन-किन कोनों को प्रकाशित किया और किन- किन कोनों को स्याह ही रहने दिया, इन सभी बिंदुओं पर तटस्थ भाव से एक दृष्टि डालती हैं इस संग्रह की कहानियाँ। मुझे उम्मीद है कि हमारे पाठक डॉ. अंबेडकर के सपनों का भारत बनाने के लिए इन कहानियों की एक स्वस्थ समीक्षा ही करेंगे। समय के साथ किसी भी निर्णय पर पुनर्विचार या निष्पक्ष समीक्षा राष्ट्र के हित में आवश्यक है। इसी भाव के साथ ये कहानियाँ उतनी ही आपकी भी हैं, जितनी हमारी। आइए, आरक्षण के पार एक नये सशक्त और सुंदर भारत का निर्माण करें।
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