कविता कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान रखनेवाली प्रख्यात ओड़िया लेखिका गायत्रीबाला पंडा की रचनाओं में सीमित शब्दों के जरिये मर्म को झकझोरने की अपार क्षमता है। छोटे-छोटे सहज और संवेदनशील शब्द-संयोजन से समाज की क्रूर वास्तविकताओं को स्वरूप प्रदान करने के साथ ही नारी चेतना की विभिन्न अनसोची दिशाएँ अपने काव्य-विन्यास के छंदो में प्रतीकों और चित्रकल्पों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रकट करने में वे सिद्धहस्त हैं।* आँखों की ओट में रहनेवाली छोटी-बड़ी घटनाएँ उनके काव्य में शब्द और अर्थ के रास्ते खुद को मुखर करती हैं। कितना विशाल हो सकता है आकाश कितनी व्यापक हो सकती है पृथ्वी और कितनी सूक्ष्मताएँ हो सकती हैं जीवन में इसका अहसास उनकी कविताओं से गुजरते हुए सहज ही हो जाता है। शब्दों से चित्र आँकने और चित्रों को शब्दरूप देने की असाधारण दक्षता है उनमें। प्रत्येक साधारण पाठक असाधारण रूप से खुद ही से मिलता है उनकी कविताओं में। मानव और जगत के प्रति संवेदनशीलता ही उनकी कविताओं का मूलस्वर है। *प्रकाशक*
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