स्मृति रवीन्द्र आरोही के गद्य का प्राण तत्त्व है। उनका पहला उपन्यास आसमान के ताक़ पर स्मृति और स्वप्न की कथा रचता है। गाँव की साधारण ज़िन्दगी से उठकर महानगर के अकादमिक और सांस्कृतिक जगत में अपना स्थान बनाने वाले नवयुवक संजीव की इस कथा में अनेक आरोह-अवरोह हैं। प्रेम स्मृति उदासी गाँव नदी दोस्त थियेटर कविता और अनेक प्रसंग इस कथा को यादगार बनाते हैं। स्मृतिहीन कहे जाने वाले हमारे समय में स्मृति की यह कथा पाठकों को बाँध लेने का कौतुक करती है। आसमान की ऊँचाई को छूने का स्वप्न और संघर्ष इस स्मृति कथा को औपन्यासिक विस्तार देते हैं। कहना न होगा कि यह उपन्यास नयी कथा भाषा और युवा ताजगी का अनोखा सम्मिश्रण बन गया है। रवीन्द्र आरोही का जन्म 1 अक्टूबर 1984 को बिहार के गोपालगंज में हुआ। शुरुआती शिक्षा गाँव में हुई। छुटपन में ही एक ग़लत रेलगाड़ी पर सवार होकर कलकत्ता आ गए। बाक़ी का बचपन इसी शहर ने दिया। पढ़ना-लिखना इसी शहर ने सिखाया। फिर क्या था मोहब्बत-सी हो गई इस शहर से फिर 'और' कहीं के नहीं हो पाए। 'निकम्मा' तो नहीं पर इस शहर ने लेखक बनाकर ज़रूर छोड़ दिया। पढ़ाई-लिखाई इसी शहर में हुई नौकरी भी कलकत्ता में ही करते हैं। पहली कहानी 2007 में छपी। हिन्दी की प्रमुख पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित। कहानियों की एक किताब 'जादू एक हँसी एक हीरोइन' हाल ही में प्रकाशित हुई है।
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