15 अगस्त 1947 के दिन भारतीय जनमानस ने एक ऐसे भारत का सपना संजोया था जहां सबकी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति होगी। गांवों-नगरों में खुशहाली होगी अमीर-गरीब का अंतर कम होगा। तब एक ही प्रश्न था सबके सामने नए भारत के निर्माण का। अफसोस कि पचास वर्ष बीतने पर भी सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न आज भी यही है कि किस प्रकार उस नए भारत का उदय हो जिसका सपना हमने आजादी के प्रथम जन्म दिवस पर संजोया था।<br>इस पुस्तक में देश के लब्धप्रतिष्ठ कवियों की चुनी हुई वे इक्यानवें राष्ट्रीय कविताएं हैं जो पिछले पचास बरस के दौरान लिखी गई हैं। इनमें कहीं राष्ट्र की वंदना के स्वर हैं तो कहीं राष्ट्रोन्नति की कामना। कुछ में युद्ध का जयघोष है तो कुछ में बिगड़ी हुए स्थिति के प्रति आक्रोश। कुछ कविताएं सांप्रदायिक सद्भाव की पुकार करती हैं तो कुछ में परिवर्तन की रुद्राणी हहराती है। ग़रज़ यह कि आजादी आने से लेकर अब तक के घटनाक्रम का सही और बेबाक चित्रण प्रस्तुत करती हैं ये कविताएं।<br>पुस्तक के संपादक हैं राष्ट्रीय धारा के प्रमुख कवि राधेश्याम प्रगल्भ जो पिछले पचास बरस से हिंदी काव्यमंच से जुड़े हैं और राष्ट्रीय स्तर के सहस्त्राधिक कविसम्मेलनों में सम्मिलित हो चुके हैं तथा जिन्होंने आकाशवाणी टेलीविजन और मंच के माध्यम से संप्रेषण को एक ऊर्जा प्रदान की है।
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