किरण काशीनाथ मराठी और हिन्दी में एकसाथ लिखने वाले युवा और प्रतिभाशाली रचनाकार हैं जिनकी सक्रियता साहित्य के साथ-साथ सामाजिक क्षेत्र में भी बखूबी दिखाई देती है। उनके संकलन ‘अब हालात काबू में हैं’ की कविताओं को पढ़ते हुए उनकी संवेदना के स्रोतों और चिंताओं तथा संघर्षों के क्षेत्र बेहद स्पष्ट रूप से रेखांकित किए जा सकते हैं। सामाजिक विषमताओं और राजनैतिक षड्यंत्रों के पाट के बीच फँसा वह दमित-वंचित इंसान उनकी कविता में आवाज पाता है जिसकी नागरिकता सिर्फ कागजों और पाँच साल में एक बार मतदान तक सीमित कर दी गई है और जिसके जेहन में धर्म और जाति के आधार पर ऐसी नफरत भर दी गई है कि वह रोटी कपड़ा और मकान की चिंताएं भूलकर अपने ही पड़ोसियों के नुकसान में अपना भला देखने लगा है। एक छोटी सी कविता ‘सायकोलाजिस्ट’ में वह सीधा और बेहद मानीखेज सवाल करते हैं - ‘तुम सायकॉलजी के बड़े पंडित हो/बताओ.. /फसाद में अक्सर/ पड़ोसी भी क्यों दंगाइयों में शामिल हो जाते हैं?’