ABHIPRET KAAL

About The Book

“अभिप्रेत काल” (उपन्यास) :- इन्सान की तरह एक देश या जाति भी अपनी नियति के अधीन होता है। राष्ट्रीय संकट के समय देशवासियों का भाग्य देश का भाग्यलिपि के साथ तकस हद तक जुडा है उसे स्वयं झेलनेवाले ही जान सकते हैं। द्वन्द संघर्ष पीडा संत्रास के बीच से गुजरने वाले इन्सान भी त्याग तितिक्षा आशा प्रत्याशा प्रेम प्रत्यय प्रतिशोध एवं प्रतारणा के सम्मुखीन होते हैं। पघपाणी-पघालया देवी-दिवाकर परी-दीनू विनोदिनी-विश्वनाथ एवं और भी कई लोग उन सारे अनुभवों के सुरंग से होकर गुजर चुकें हैं। अपने सिमित जीवन-काल में उन्होंने एक उर्ध्वतर अभिलाष पोषण किया है; बेचैन हुए हैं मुक्ति के तिए आजादी का सपना देखा है। जिन अख्यात लोगों का धूल बराबर जल-कण सदृश योगदान ने स्वतन्त्रता संग्राम को शक्तिमन्त बनाया होगा वैसे ही कुछ चर्चित चेहरों की अनालोचित जीवन-यात्रा का कियत अंश है ‘अतभप्रेत काल’ की कथावस्तु। लेखिका की कथन शैली की कारीगरी प्रस्तुतीकरण का कौशि और कल्पना की अकल्पनीय ऊँचाई ; हमारी स्मृति प्रवणता को पिघला देने में समर्थ है।
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