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About The Book
Description
Author
जीवन में सभी के पास खट्टे मीठे अनुभव तो होते ही हैंऔर सभी का जीवन के प्रति अपना अपना नज़रिया होता है । समाज और रिश्तों के बीच रहते हुए मैं भी भला इन सब से कैसे अछूती रह जाती । कभी कुछ सहेज कर नहीं रखा । थोड़ा बहुत कुछ रखा भी होगा तोकिसी पुरानी संदूक में रद्दी बनकर पड़ा होगा । शादी के बाद घर और बच्चों की ज़िम्मेदारी के बीच अपने लिखने के स्वभाव को दबाती चली गई। गाहे-बगाहे लिख भी देती थी और कुछ समाचार पत्र पत्रिकाओं में स्थान भी मिला। लेकिन उससे क्या हासिल होना था...कुछ दिनों बाद वो भी मुझे रसोईघर में मसालदानी के ड़ब्बों के नीचे बिछा हुआ मिलता। खै़र...जीवन है तो सुख और दुख का होना भी लाज़मी है नहीं तो हम निरंकुश हो जाएंगे। कुछ हाथ हौसला बढ़ाएंगे तो कहीं आलोचनाएं भी जरूर होंगी। आपको आगे बढ़ाने और अपने उद्देश्य को पूरा करने में इन सभी बातों का बहुत बड़ा योगदान होता है।