यह पुस्तक पिछले एक दशक में मेरे द्वारा लिखे गए विभिन्न लेख कविताएँ व्यंग्य और कविताओं का चुनिंदा अंश है जो मेरी उस समय की विचारधारा और सोच को बयाँ करती है। इनमें तथ्यात्मक त्रुटियों की गुंजाइश है लेकिन उनको दूर करने और मूलरूप से छेड़छाड़ करने की जगह मैंने हूबहू वैसा ही छापने का फैसला किया। हो सकता है अब मेरी विचारधारा अनेक रास्तों से गुज़रकर किसी अन्य छोर पर आ गयी हो दस वर्ष पश्चात् आज राजनैतिक व्यवस्था वैसी नहीं हो सामाजिक बदलाव हो गए हों अंतरराष्ट्रीय राजनैतिक समीकरण बदल गए हों इसीलिए कहना उचित है कि यह तथ्यात्मक नहीं साहित्य की किताब है और इसे ऐसे ही पढ़ा जाए।- AUTHOR
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