साहित्य की अनेक विधाएँ हैं। सबका अपना-अपना महत्त्व है। इनमें सर्वाधिक चर्चित लोकप्रिय एवं महत्त्वपूर्ण विधा है एकांकी विधा। साहित्य की अन्य विधाओं में पाठक को अपने मन-मस्तिष्क में कथानक को चित्रित करना पड़ता है। जो पाठक जितनी सफलतापूर्वक कथानक को चित्रित कर पाता है उतनी ही सफलतापूर्वक रचना से तादात्म्य स्थापित कर लेता है। एकांकी में अधिक कल्पना की आवश्यकता नहीं क्योंकि सब कुछ प्रत्यक्ष घटित होता दिखता है। इसलिए पाठक एवं दर्शक शीघ्र ही तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं बल्कि उसी वातावरण में जीने लगते हैं। इसीलिए मुझे एकांकी विधा अत्यधिक पसंद है। एकांकी नाटक से छोटा होता है अतः इसे पढ़ने में तथा मंचित करने में कम समय लगता है। छोटे में अधिक तथा बड़ी बात बताने की कला ही वास्तव में एकांकी है। आज के व्यस्तता भरे जीवन में मनोरंजन के लिए भी अधिक समय निकालना कठिन हो जाता है इस दृष्टि से भी एकांकी उपयोगी होता है। इस एकांकी संग्रह के सभी विषय समय-समय पर मेरे मन को उद्वेलित करते रहे हैं। समाज है तो समस्या होगी ही। दिन-रात समस्या को रटते रहने से उसका हल नहीं होता। महात्मा बुद्ध ने कहा था कि समस्या है तो उसका कारण भी होगा। यदि कारण को दूर कर दें तो समस्या स्वयं ही समाप्त हो जाएगी। कवि रहीम ने भी कहा है – रहिमन मूलहि सींचबो फूलहि फलहि अघाय।। दिनकर जी ने भी कहा है कि वीर तो विघ्न का मूल नसाते हैं। इसलिए समस्या का हल निकालने के लिए; समस्या को समाप्त करने के लिए उसके मूल तक; जड़ तक पहुँचना होगा और फिर उस मूल यानी जड़ को सुधारना या समाप्त करना होगा। इस एकांकी संग्रह के सभी एकांकियों में यही किया गया है। समाज की विभिन्न समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है उनके कारणों पर चिंतन किया गया है और फिर उनके समाधान को प्रस्तुत किया गया है।
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