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About The Book
Description
Author
विनोबा भारतीयता के प्रतीक हैं। भारतीय ज्ञान संपदा और परंपरा के सशक्त हस्तक्षेप हैं। गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी ऋषि विनोबा भारतीयता के स्वाभिमान हैं। उन्होंने प्राचीन ज्ञान परंपरा को नवीनता के साथ संयुक्त कर समयानुकूल शास्त्र गढ़े और नवीन व्याख्या की। शास्त्र वचनों में संपृक्त भावों को अपने आचरण में साकार किया। समस्त समाज में सर्वोदय के इन भावों की अभिव्यक्ति को ही अपने जीवन का सार बनाया। मानव और समाज के बीच एकत्व को प्रगाढ़ करने के उनके प्रयोग आज भी प्रासंगिक हैं। सर्वोदय की सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक विचारधारा भारत के लिए आज भी युगानुकूल है। अपने धर्मयुक्त जीवन से उन्होंने धर्म के सनातन मूल्यों को पुन: समाज के समक्ष उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया। विभिन्न धर्मों के मूल सार को आम जनता की भाषा में प्रकट किया। त्याग तपस्या और समर्पण से अनुप्राणित विनोबा जी विज्ञान और आध्यात्मिकता के मेल के माध्यम से मानवता के कल्याण की आशा करते हैं। एक ऐसे समय में जब मानवता विनाश और अनवरत संघर्ष का सामना कर रही है; औद्योगीकरण पर्यावरण विनाश और अंधाधुंध उपभोक्तावाद हमारे अस्तित्व को ही संकट में डाले हुए है ऐसे समय में विनोबा जैसे विचारकों के विचार और साभ्यतिक दर्शन हमें मानवता की रक्षा के लिए दिशा प्रदान करते हैं। विनोबा विचार के अध्येताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा लिखित आलेख विनोबा विचार के विभिन्न आयामों को सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। विनोबा के 125वें जन्मशती वर्ष के क्रम में प्रकाशित यह पुस्तक विश्वविद्यालय की ओर से भारतीय ज्ञान परंपरा के पुरोधा और संत विनोबा के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि है।