हर तरह के शोषण के प्रति विद्रोह दरअसल लेखक के खमीर में उसकी खुदादाद सलाहियतों के साथ गुँथा होता है। उसका विद्रोह हर उस बंधन से होता है जो इंसान के दुख का कारण बने। वह बाहर की भौतिक दुनिया से ज़्यादा इंसान के अंदर फैले भावना के संसार को समझने में डूबा होता है और उसी की वकालत करता है और अपने लेखन द्वारा उसका मुकदमा लड़ता है।वर्तमान समय में सियासत भी इंसानी दुख का बहुत बड़ा कारण बन चुकी है। यह जानकर पाठकों को आश्चर्य होगा कि कुछ देशों में टाइपराइटर रखना जि़रॉक्स कॉपी बनाना फोटों कॉपी करवाना अपराध के दायरे में आता है। राजनीति लेखक पर कड़ी नज़र रखती है। इसके अलावा कुछ परिवार विशेषकर पति अक्सर पत्नियों को लेखन की इजाज़त नहीं देते हैं।इस पुस्तक के पन्नों में विश्व स्तर के लेखकों की कहानियों के ज़रिए जो प्रश्न उठाए गए हैं वे मानव समाज के बुनियादी प्रश्न हैं जो किसी भी देश और समाज के हो सकते हैं। प्रश्न के साथ इसमें साहित्य की मानी हुई रचनाओं की भी उपस्थिति दर्ज है जो कहानी की तराश भाषा-शैली शिल्प को भी दर्शाती है।कहानियों में एक-सी समस्या एक-सी संवेदना एक जैसी ही बेबसी और कशमकश है। कभी रोटी की परेशानी तो कभी राजनीतिक दबाव तो कभी अंकुश की घुटन तो कभी इंसानी रिश्तों का उलझाव। लेकिन उनसे निबटने के अपने तरीके हैं। इन सभी देशों में उन लेखकों की स्थिति अधिक शोचनीय है जो सत्ताविरोधी हैं।
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