Adab Me Baai Pasli: Bhartiya Urdu Kahaniyan - Vol. 5 (Afro-Asiayi)


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About The Book

उर्दू भाषा का जन्म हिंदुस्तान में हुआ। मातृभाषा जो भी हो मगर लिखनेवाले उर्दू में लिखते रहे। इसलिए जहाँ उर्दू का विस्तार बढ़ा वहीं पर उसके पढ़नेवालों की दिमागी फिज़ा भी रौशन और खुली बनी। भाषा पर किसी धर्म और विचारधारा की हुकूमत नहीं हो सकती है जो ऐसा सोचते हैं वे अपना ही नहीं अपनी भाषा के विकास का भारी नुकसान करते हैं।अपनी ऐतिहासिक धरोहर को वक्ती सियासी मुनाफे का मोहरा बनाकर उनका व्यक्तिगत लाभ हो सकता है मगर बड़े पैमाने पर हम उर्दू साहित्य का खजाना खो बैठेंगे और साथ ही हिंदी भाषा साहित्य का भी नुकसान करेंगे। अनेक लेखकों की हिंदी भाषा लिपि में लिखी कहानियों में उर्दू शब्द नगीने की तरह जड़े नज़र आते हैं जो भाषा को नया सौंदर्य देते हैं। उनको हटाकर वहाँ हिंदी भाषा के खालिस शब्द लगाने की मुहिम चलाएँगे तो उस गद्य का क्या बनेगा?हमारे बुजुर्गों ने औरतों के इतने शानदार चरित्र गढ़े हैं जो आज भी जि़ंदा महसूस होते हैं जिनमें जि़ंदगी अपने सारे परिवेश के साथ धड़कती है और हर रंग में हमारे सामने अहसास का पिटारा खोलती है और इस विचार को पूर्ण रूप से रद्द कर देती है कि औरत के बारे में सिर्फ औरत ही ईमानदारी से लिख सकती है। यह सौ फीसदी सच है मगर कला इस तथ्य से आगे निकल कर हमें यह बताती है कि फन की दुनिया औरत-मर्द के इस फर्क को न मानती है न स्वीकार करती है। सबूत इन कहानियों के रूप में सामने है। इन कहानियों में पूरी एक सदी का समय कैद है जो हमारे बदलते खयालात समाज माहौल और इंसान को हमारे सामने एक सनद की शक्ल में पेश करते हैं। यह अलग बात है कि कुछ किरदार हमें बिल्कुल नए और वर्तमान में साँस लेते लगें।
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