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About The Book
Description
Author
पिछले पंद्रह-बीस साल से जो माहौल बन रहा था उससे यह ध्वनि निकल रही थी कि मध्यपूर्वी देशों को सख्त ज़रूरत है बदलाव की शिक्षा की और लोकतंत्र की! मगर जो बात छुपी हुई थी इस प्रचार-बिगुल के पीछे कि वहाँ के बुद्धिजीवियों रचनाकारों कलाकारों और आम आदमी पर क्या गुज़र रही है और इन देशों के हाकिम महान शक्तियों की इच्छाओं और जनता की ज़रूरतों के बीच संतुलन कैसे साधते हैं और एकाएक तख्ता पलट जाता है या फिर देश में विद्रोह उन्हीं के अंगरक्षकों द्वारा उठता है और पलक झपकते ही वह मार डाले जाते हैं। ऐसी स्थिति को वहाँ का संवेदनशील वर्ग कैसे झेलता है जो जेल में है जलावतन है या फिर देश से भागकर अपनी जान बचाने को फ़िराक में है। उसके ख्यालात क्या हैं? वह क्यों नहीं सरकार की आलोचना करना बंद करते हैं और कलम गिरवी रखकर आराम से जि़ंदगी जीते हैं जैसे बहुत से लोग जीते हैं अपना ज़मीर बेचकर!हिंदी की मशहूर कथाकार नासिरा शर्मा लंबे समय से मध्य-पूर्वी देशों की राजनीति और साहित्य में गहरी दिलचस्पी लेती रही हैं। समय-समय पर वे बिना किसी संस्था या सत्ता-प्रतिष्ठान की सहायता के सिर्फ अपनी पहल पर इन देशों की उत्कृष्ट रचनाओं और रचनाकारों को हिंदी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करती रही हैं। अदब में बाईं पसली’ उनके इसी निजी प्रयास का एक वृहत् संस्करण है जिसमें उन्होंने छह जिल्दों में न सिर्फ मध्य-पूर्वी बल्कि पूर्वी देशों के महत्त्वपूर्ण कथाकारों कवियों और शायरों की रचनाओं को समेटा है। इस पहले खंड में एफ्रो-एशियाई कविताओं को लिया गया है। इनमें से कुछ अनुवाद उनके पहले के किए हुए हैं और कुछ को इसी पुस्तक के लिए खासतौर पर किया गया है।साहित्य और समाज में स्त्री-पक्ष निश्चय ही उनके गंभीर सरोकारों में से एक है जिसको इस और इस शृंखला की बाकी पुस्तकों में हम स्पष्ट देखते हैं। इस परियोजना पर काम करते हुए ही उनको अहसास हुआ कि जहाँ तक साहित्य का सवाल है वहाँ स्त्री और पुरुष दोनों ही स्त्री के हितों को लेकर अपनी आवाज़ बुलंद किये हुए हैं। बस जगह का फर्क है एक बाएँ तो एक दाएँ।