एफ्रो-एशियाई नाटक एवं बुद्धिजीवियों से बातचीत इस संग्रह में तीन महत्त्वपूर्ण नाटकों के अनुवाद दिए जा रहे हैं जिनमें नाटककारों के अपने व्यक्तित्व एवं जीवन की गहरी छाप है। उस भाषा देश और समाज की परंपराएँ तो झलकती हैं साथ ही उनकी समस्याएँ कठिनाइयाँ दुख और सुख की भी सूचनाएँ मिलती हैं।रचनाकारों और पाठकों की अपनी निजी जीवनदृष्टि अनुभव पसंद-नापसंद होती हैं मगर इन सब के बावजूद कुछ रचनाएँ इन सारी बातों के दबाव से निकल अपनी उपस्थिति विश्व स्तर के साहित्यकारों और पाठकों व आलोचकों में बना लेती हैं जहाँ नापसंदगी के बावजूद उसकी अहमियत से इंकार नहीं किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर इन तीनों नाटकों के विषय जिन के तारों से हर काल में नई आवाज़ें निकालने की कोशिशें की गई हैं जो आज भी जारी हैं। इसका कारण वे बुनियादी सवाल हैं जिनसे लगातार आज का आधुनिक इंसान जूझ रहा है। अली ओकला ओरसान का नाटक पुराने ऐतिहासिक पर्दे पर नई समस्याओं की ओर इंगित करता है। दूसरा नाटक पशु-बाड़ा’ गौहर मुराद का बेहद लोकप्रिय नाटक रहा है। रिफअत सरोश का पूरा वजूद शायरी और अदब से प्रभावित रहा है। उनके विषय किसी विशेष वर्ग या वाद तक सीमित नहीं रहे हैं उनके व्यापक दृष्टिकोण का नमूना उनका नाटक प्रवीण राय’ है।
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