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About The Book

About the Book: जो अब तक था अनकहा। About the Author: वो बहुत ख़ुश होगी और एक जगह रुकने का नाम नहीं लेगी वो दुःखी होगी पर देखकर लगेगा नहीं। शायद यही उसके लिए जीवन का मंत्र रहा है - सुख और दुःख का समान हो जाना। किसी के लिए नृत्य करना सुख की अभिव्यक्ति है किसी के लिए क्रंदन भी दुःख का पर्याय नहीं। मौन सुख और दुःख दोनों की चरम सीमा की समान अवस्था है। उसे उपहारों से प्रेम है कह सकते हैं कि प्रेम स्वयं एक सबसे बड़ा उपहार है पर आजकल आम तौर पर ये उपहार नहीं उपहास है। उसका जन्म जीवन का अर्थ जानने के लिए नहीं मृत्यु का सत्य जानने और भय मिटाने के लिए हुआ है। हो सकता है आप इस पंक्ति के आगे न पढ़ें क्योंकि आपको आनन्द नहीं मिल रहा हो सकता है आप आखिरी पृष्ठ तक बिना रुकावट के जाएं एक शब्द से दूसरे शब्द एक भाव से दूसरे भाव। ये भी हो सकता है कि आप इस पुस्तक की ओर देखें तक नहीं! यही तो हम सब करते हैं - किताबों और लोगों दोनों के साथ। पर वो किताब नहीं है किताबों का अंत होता है वो काव्य है और कविता का कोई अंत नहीं। उसे रंगों से प्रेम नहीं लोगों के जीवन में रंग भरने से प्रेम है। उसके हृदय का कविता से वही नाता है जो एक रूह का ईश्वर से होता है और इस अवस्था में समय शरीर है अनन्त होकर भी इसका अंत है टुकड़ों में। उन्हीं टुकड़ों में बहुत से लम्हों के अंत हुए हैं जो उसने देखे पर स्वयं को अनन्त बना लिया। बात कहने का सबसे सुन्दर तरीका है बिना शब्दों के किसी बात को कहना और जिससे कही जाए उसका भली भांति समझ जाना प्रथम अक्षर से लेकर विराम तक। कहां हां कहना है और कहां नहीं महत्वपूर्ण है पर उससे भी महत्वपूर्ण है कहां विराम लगाना है और कहां अल्पविराम किसका स्वागत करना है और किससे विदा लेनी है। विदा लेना सदैव दुःख का सागर लेकर आए ये अनिवार्य नहीं।
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