आगाज़’ यानि ‘शुरुआत’ वो भी 54 साल की उम्र में। क्या करते कि अब तक जिंदगी हर रोज़ नई चुनौतियाँ देती गई और पूरे जज़्बे और खुलूस के साथ उनका सामना करने के बाद जब आजमाइश का दौर गुज़रा तो आरजुओं का बारी आई। तो बस अलमारी के अनदेखे से कोने में पड़ी हुई डायरी के कुछ अधलिखे पन्नों को संजोया और यही बन गया ‘आगाज़’...
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