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About The Book
Description
Author
आज हमारी दुनिया में जो मानवीय भावनाओं का असंतुलन पैदा हो रहा है उसका कारण है नि:स्वार्थ प्रेम की कमी। अतः जब भी आप प्रेम करते हैं तो सदैव निःस्वार्थ रहें। इन्हीं भावनाओं को व्यक्त करते हुए इस ग़ज़ल संग्रह में कहीं अपार प्रेम कहीं बेहिसाब तकलीफें कहीं मिलन के दो शब्द तो कहीं जुदाई के शेर हैं।‘अगर तुम न जाते’ मेरी इन्हीं ग़ज़लों का एक छोटा सा संग्रह है। इसमें एक ग़ज़ल यूँ है कि.अपनी मोहब्बत में हुए बे-निशां किस तरह से
बिखरा है ये आसमाँ कैसे-कैसे ?
भटकते रहे और भटक ही रहे हैं संग में लिए यादों को उसकी
ज़िंदगी ने लिए इम्तेहां कैसे-कैसे ?आयी खिजाँ उसने बदली निगाहें वो हमारा था रहेगा हमारा ही हरदम
हमने भी पाले गुमाँ कैसे-कैसे ?
न कोई है अपना न संगी न साथी न सूरज की किरने न दिया है न बाती
चारों तरफ है अंधेरा-अंधेरा
होते हैं ज़मीं पर मकां कैसे-कैसे ?खुद ही खिलाया और खुद ही मिटाया प्यासी कलियों को उसने पानी पिलाया
वक़्त बदला तो उसने ही लूट डाला उन्हेंगुल भी खिलाते हैं ये बागबाँ कैसे-कैसे ?
न राही न रहबर न संग में हवाएँ हैं है रास्ता भी टूटा और ज़हरीली फ़िज़ाएँ हैपाएगा मंज़िल ये कारवां कैसे-कैसे ?मुझसे तुमसे मोहब्बत तुम्हीं से मोहब्बत साँसों में तुम और यादों में तुम हो
फिर तड़पते हुए इस तरह छोड़ जानाबदलते लोग अपनी जुबां कैसे-कैसे ?
अपनी मोहब्बत में हुए बे-निशां किस तरह से
बिखरा है ये आसमाँ कैसे-कैसे ?
आप लोगों से इल्तिजा है कि कृपया इस ग़ज़ल संग्रह को अपनी मोहब्बतों से नवाज़ें मैं ताउम्र आपका एहसानमंद रहूँगा।