ओ अभागे निकम्मे काबर पुरुष । ओ निराशा और विषात में डूबी हुई दुरात्मा! क्या तू मरने के लिए ही बनायी गयी है? क्या तू समझता है कि तू मृत्यु का स्वाद चख सकेगा? जिसने अभी जीवन का मर्म नहीं जाना वह मरना क्या जाने? हाँ अगर ईश्वर है और मुझे वण्ड वे तो मैं करने को तैयार हूँ। सुनता है ओ ईश्वर। मैं तुझसे घृणा करता हूँ सुनता है? मैं तुझे कोसता हूँ। मुझे अपने अग्निवजों से भस्म कर वे मैं इसका इच्छुक हूँ मेरी बड़ी अभिलाषा है। तू मुझे अग्निकुण्ड में डाल वे। तुझे उत्तेजित करने के लिए देख मैं तेरे मुख पर थूकता हूँ। मेरे लिए अनन्त नरकवास की जरूरत है। इसके बिना यह अपार क्रोध शान्त न होगा जो मेरे हृवय में भड़क रहा है।- इसी पुस्तक से
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