कविता हम सब औरतों केलिए हमेशा से पड़ोस की “ खाला का घर” रहा है। जो कुछ अच्छा- बुरा घटता है हम उसे सुना आती हैं उसके कंधे पर सर रखकर रो आती है प्रेम- व्रेम होता है या माता- पिता में कुछ अनबन ही हो जाती है तो बस उसको बताती हैं।कविता से स्त्रियों की यह मस्त आपसदारी समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से गहन विश्लेषण का विषय है। यह संग्रह भी एक सरलचित्त लड़की की कविता से एक अंतरंग गपशप है जिससे हमारे समय के गली- मुहल्लों के कई प्रसंग आत्मीयता से साझा किए गये हैं।ऊन से सलाइयों पर जैसे दुख- सुख बुने गए हैं वैसे कुछ आपबीती- जगबीती भी गप करते- करते बुन दी गई है। इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा! : - अनामिका (वरिष्ठ कवयित्री)
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