‘अजब शीला की ग़ज़ब कहानी’ मेरी समय-समय पर लिखी और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व संग्रहों में छपी कहानियों का संकलन है। इन कहानियों को लिखते हुए मैं अलग-अलग मानसिक स्थितियों से गुजरती रही। जीवन और समाज के इतने रूपों से हम दिन रात इतने मिलते-जुलते रहते हैं कि कब ये सभी मेरे और मेरे आसपास के जीवन से गुजरते हुए रचनात्मक स्वरूप ले लेते हैं मुझे पता नहीं चलता। पता केवल यह चलता है कि इनपर ध्यान देना और इन्हें आप सबके सामने एक रचनात्मक स्वरूप में लेकर आना जरूरी है। अपनी रचनाओं की समसामयिकता और उनकी प्रासंगिकता एक ओर संतोष देती है मुझे लेकिन दूसरी ओर यह मुझे उतना ही दुःख भी देती है। मेरी समझ से किसी भी रचना या स्थिति-परिस्थिति की समसामयिकता या उनकी प्रासंगिकता मुझे उस सोच की ओर ले जाती है कि हालात अभी भी जस के तस हैं। तो एक सवाल जो दिन-रात मुझे मथता रहता है वह यह कि हम बदले किधर से और कहां से? क्या हम सही में बदलाव के आकांक्षी हैं या महज एक लम्बी सांस लेकर कह देने की रवायत के आदी कि यह सब तो ऐसे ही चलता है चलता रहेगा।
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