Akal Badi Ya Google Baba

About The Book

अक्ल बड़ी या गूगल बाबाहाथों में मोबाइल आने से हम बेशुमार सूचना तो पा सकते हैं लेकिन क्या उससे ज्ञान व सयानापन (या समझ) भी आ सकता/ती है? आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ-साथ अक्लमंद होने के लिए मानव का शिक्षित संस्कारी व सभ्य-सुसंकृत होना अधिक जरूरी है। लेकिन क्या ऐसा हो रहा है? क्या हमारा समाज शिक्षित सभ्य व सुसंकृत हो रहा है? क्या तीव्र गति के प्रोसेसर हमारे दिमाग में कहीं ऐसा कचरा तो नहीं डालते रहते जिसे हम जल्दी से दूसरों को फॉरवर्ड करने में ही लगे रहते हैं? साथ ही हमारी समाज व राष्ट्र के प्रति कैसी सम्वेदना होनी चाहिए और हम अज्ञान व संकीर्ण मानसिकता से स्वंय को कैसे बचा कर रखें। अपने विचारों को सही तार्किक व सुलझी दिशा देने के लिय हमें स्वंय से कुछ प्रश्न करने होंगे। मन के अंधेरों को दूर करते हुए ज्वलन्त विषयों पर लिखे गये बाईस लेख एक प्रयत्न है इसी दिशा में जिससे हम अपनी दिशा व दृष्टि को दूर तक ले जाएँ उसे व्यापक सूक्ष्म एवं सम्वेदनशील बनाएं। समझ या अक्ल (विस्डम) किसी को दी नहीं जा सकती उसे व्यक्ति को अपने में विकसित करनी होती है तर्क और कुतर्क ज्ञान एवं ज्ञानाभास के अन्तर को जानना पड़ता है तब जाकर वह बोध भीतर उपजता है जिसकी अपेक्षा सारी मनुष्यता करती है। यही समझ या अक्ल इस मनुष्यता को भविष्य के प्रति आश्वस्त कर सकती है और इस पृथ्वी को सुरक्षित रख सकती है। गूगल बाबा अक्ल के अधीन रहे तो लाभदायक और उपयोगी हो सकता है अन्यथा मनुष्यता को भ्रमित और अहंकारी होने से रोकना सम्भव नहीं होगा - और यह मनुष्यता का दुर्भाग्य होगा।
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