अखंड भारतवर्ष निर्माण का आरंभ
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<p>पुस्तक के बारे में चाणक्य- जो पाँव मेरी मातृभूमि के आँचल को रौंधने हेतु भारतवर्ष आएगा उस पाँव को सीमा से ही वापस लौटना होगा जो हस्त माँ भारती की स्मिता को छूने का प्रयत्न करेगा उस हस्तों को कटना होगा और जिन नेत्रों ने भारतवर्ष के अस्तित्व के सर्वनाश का स्वप्न देखा है उन नेत्रों को सदैव के लिए चिरनिंद्रा में सोना होगा। व्यापारियों से ज्ञात हुआ है कि अलेक्जेंडर विश्वविजेता बनने हेतु मेसेडोनिया से निकल चुका है। भविष्य में जब कभी भी अलेक्जेंडर भारतवर्ष की संस्कृति सभ्यता धर्म पहचान और धरोहर को विध्वंस करने हेतु भारतवर्ष आए उससे पूर्व हमें यथाशीघ्र अखंड भारतवर्ष का निर्माण करना होगा चंद्रगुप्त! एक सीख सदैव स्मरण रखना चंद्रगुप्त राजनीति कहती है कि प्रथम पड़ोसी से स्वयं का बचाव करना चाहिए परिवार की आपसी प्रतिस्पर्धा और परस्पर मतभेद तो हम पश्चात में भी सुलझा सकते हैं इसलिए धनानंद से मैं अपने अपमान का प्रतिकार पश्चात में लूँगा। अभी अखंड भारतवर्ष की स्थापना अनिवार्य है चंद्रगुप्त! धनानंद को मगध सिंहासन से पदच्युत कर तुम्हें सम्राट बनाना मेरा प्रण है चंद्रगुप्त... किन्तु मेरा स्वप्न अखंड भारतवर्ष का निर्माण करना है। अब मात्र अखंड भारतवर्ष का निर्माण ही भारतवर्ष की संस्कृति सभ्यता धरोहर संप्रभुता अखंडता तथा धर्म की रक्षा और सुरक्षा कर सकता है।</p>
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