मैं बिना किसी संकोच के यह स्वीकार करना चाहता हूँ कि भाषा और सोच के स्तर पर मेरी ये ग़ज़लें उस आम आदमी के पक्ष में खड़ी हैं जो कदम-कदम पर सत्ता और सिस्टम के शोषण और षड्यंत्रों का शिकार होता रहता है। अपनी अभिव्यक्ति के लिए मैंने हिन्दी-उर्दू दोनों ही भाषाओं के उन शब्दों को बिना किसी पूर्वाग्रह या दुराग्रह के प्रयुक्त किया है जिन्हें आम हिन्दी भाषी रोज़ाना बोलता और लिखता है। उर्दू के उन शब्दों को जिन्हें थोड़ा-सा रूप बदलकर हिन्दी ने एडॉप्ट कर लिया है जैसे ‘मानी’ ‘अमन’ ‘मौका’ जो उर्दू में क्रमशः ‘मअनी’ ‘अम्न’ ‘मौकअ’ लिखे जाते हैं इन्हें मैंने जान बूझकर इनके हिन्दी स्वरूप में लिया है।
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