Akka Mahadevi - Kaljayi Kavi Aur Unka Kavya

About The Book

गागर में सागर की तरह इस पुस्तक में हिन्दी के कालजयी कवियों की विपुल काव्य-रचना में से श्रेष्ठतम और प्रतिनिधि काव्य का संकलन विस्तृत विवेचन के साथ प्रस्तुत है।अक्क महादेवी 12वीं सदी की कर्नाटक की एक विशिष्ट भक्त कवयित्री थीं। वे परम शिवभक्त थीं और उनके द्वारा लिखे कन्नड़ में 434 वचनों में उनके प्रेम और भक्ति की भावना झलकती है। 12वीं सदी के कन्नड़ समाज में वर्ण वर्ग जाति और लिंग भेद की बहुत कुरीतियाँ थीं और अक्क महादेवी इन सबकी सख़्त विरोधी थीं; यहाँ तक कि उन्होंने अपना जीवन एक पारम्परिक नारी के बिलकुल विपरीत व्यतीत किया। उनका मानना था कि सभी भौतिक वस्तुओं के त्याग से ही सच्ची भक्ति हो सकती है इस त्याग में उनकी आस्था इतनी पक्की थी कि उन्होंने अपने वस्त्रों का भी त्याग कर दिया। बावजूद इसके कि मध्यकालीन भक्त-संत-कवियों की शृंखला में अक्क महादेवी मध्यकालीन भारत की एक महत्त्वपूर्ण आवाज़ हैं लेकिन कन्नड़ भाषा से बाहर उनके वचनों से कम ही लोग परिचित हैं। इसी अभाव को दूर करने का प्रयास है यह संकलन जिसमें उनके 137 वचनों का हिन्दी में सहज भाव-रूपांतर प्रस्तुत है।इस पुस्तक का चयन व संपादन माधव हाड़ा ने किया है जिनकी ख्याति भक्तिकाल के मर्मज्ञ के रूप में है। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष माधव हाड़ा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला में फ़ैलो रहे हैं। संप्रति वे साहित्य अकादेमी नई दिल्ली की साधारण सभा और हिन्दी परामर्श मंडल के सदस्य हैं।
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