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About The Book
Description
Author
About the Book: यह कविताएं मोती हैं उस माला के जो अनंत अस्तित्व ने पहनी है। वो जब गाता है नाचता है तो यह मोती गिरते हैं बरसते हैं पृथ्वि पर और सीधा कवि के हृदय में। पृथ्वि पर गिरें तो बरसात बन जाएं सूर्य की कोमल किरणें बन जाएं सुनहरी धूप लालिमा लिए शाम बन जाएं ठंडी पुरवैया नीला आकाश पेड़ पोधे पशु पक्षी बन जाएं; और कवि के हृदय पर बरसें तो आनंद-परमानंद बन जाएं प्रेम वैराग्य योग और आत्मज्ञान बन जाएं। जो भीगना जानते हैं बाहर से और भीतर से वो भीग जाएं चिदाकाश से बरसती इन कविताओं में। About the Author: रणधीर सिंह (उपनाम - धीर) 11 दिसंबर 1998 में पंजाब के एक छोटे से गांव में जन्मे। बचपन से ही शब्दों के साथ खेलने और दीवारों पर लिखने की उनकी आदत ने उन्हें युवा होने पर क़लम उठाने और कविताएं लिखने को प्रेरित किया। यद्यपि धीर की मातृभाषा पंजाबी है पर पिता जी के सेना में होने के कारण वह अधिकतर जीवन भारत के अन्य राज्यों में रहे हिंदी भाषा में कुशल होते गए और बाक़ी भाषाओं को भी सुनते और जानते गए। भारतीय शास्त्रीय संगीत की साधना ने उन्हें हिंदी प्रेमी बना दिया और समय के साथ-साथ वह भारतीय कला साहित्य संस्कृति और दर्शन के जिज्ञासु और पिपासु होते गए। धीर अंग्रेज़ी साहित्य के छात्र हैं और अंग्रेज़ी में भी लिखते हैं इसके अलावा वह हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा का अनुवाद करने को भी अपना काम जानते हैं।