मुक्तिबोध पर बहुत शोधकार्य हुआ है। उन पर स्वतंत्र लेखन भी बहुत हो चुका है। यह भी सही है कि वे अपने समय के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे थे। पर क्या उनकी ठीक-ठीक पहचान हो पाई है? मोतीराम वर्मा ने ‘लक्षित मुक्तिबोध’ नामक अपनी पुस्तक में दो दर्जन से अधिक लोगों का साक्षात्कार लेकर मुक्तिबोध को लक्षित करने का प्रयास किया है। परंतु क्या उनका प्रयास सफ़ल रहा है? क्या मुक्तिबोध को हमने लक्षित कर लिया है? उन्हें पहचान लिया है? श्रीकांत वर्मा का मानना है कि मुक्तिबोध को हिंदी जगत ने अब पाहचान लिया है। लेकिन सचाई यह है कि वे आज भी अंधेरे में हैं। हाँ रोजगार के लिए जीवन भर भटकने वाले मुक्तिबोध ने कइयों के लिए जीविका के उपाय कर दिए हैं। लोग आवश्यकतानुसार उनके नाम पर वाह-वाही लूट रहे हैं। शरद जोशी कहते हैं- “आज मुक्तिबोध की जय-जयकार सुनकर कई बार तो बहुत अजीब लगता है। हत्या के बाद जनाजे को सजाने की हरकत से लोग बाज नहीं आते। लोग कहते हैं कि भविष्य में मुक्तिबोध को हिंदी और ठीक से समझ सकेगी। हिंदी जगत की प्रकृति को ध्यान में रख मैं इसका अर्थ यही लेता हूँ कि अवसरवादिता के दौर आते रहेंगे और लोग मुक्तिबोध को फ़ेरा कराते रहेंगे।”-इसी पुस्तक से
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.