इन लघुकथाओं का प्रादुर्भाव कैसे हुआ ? अस्सी के दशक के प्रारम्भ की बात है जिन दिनों में दिल्ली दूरदर्शन में नौकरी करता था उन्हीं दिनों सुप्रसिद्ध साहित्यकार कमलेश्वर ने अतिरिक्त महानिदेशक दूरदर्शन का पद ग्रहण किया था। कमलेश्वर ने दूरदर्शन के कार्यक्रमों में गुणवत्ता की दृष्टि से कई सुधार किये। इसी क्रम में अनेक नए कार्यक्रम भी शुरू किये गए। दूरदर्शन के कार्यक्रमों को लोकप्रिय बनाने के लिये उन्होंने स्वयं भी कई कार्यक्रमों में नियमित रूप से भाग लिया। कमलेश्वर के द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला कार्यक्रम ‘परिक्रमा’ बेहद लोकप्रिय था जिसमें जीवन के हर क्षेत्र के मुद्दे उठाये जाते थे। उनका एक और कार्यक्रम भी था ‘सुनो कहानी कमलेश्वर से’ जिसमें चित्रों के साथ लघुकथाएं प्रस्तुत की जाती थी। संयोगवश ऐसा हुआ कि कमलेश्वर जी की अति व्यस्तता के चलते यह कार्यक्रम उन्होंने मुझे संपादन एवं दूरदर्शन में लाईव प्रस्तुत करने के लिए दिया। जिसे मैंने ‘सुनो कहानी प्रभुदयाल खट्टर से’ शीर्षक से लगभग दो वर्ष तक दूरदर्शन पर प्रस्तुत किया। बाद में मैंने NCERT में जब अपना नया पद ग्रहण किया तो यह कार्यक्रम बंद हो गया। इसी बीच कमलेश्वर जी ने भी दूरदर्शन को छोड़ दिया। लघुकथाओं को प्रस्तुत करने का यह कार्यक्रम इतना ज्यादा लोकप्रिय हुआ कि इस कार्यक्रम की प्रशंसा में बोरी भरकर पत्र आते थे। यद्यपि वहां प्रसारित कहानियां दर्शकों द्वारा भेजी जाती थी। जो आमतौर पर मौलिक नहीं होती थीं।
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