अमलतास एक कहानी ही नहीं एक अनुभव है। इसे पढ़ा नहीं जिया जाएगा अल्फ़ाजों में ! सरहद पर रहने वाले उन लोगों की चीख़ उन लोगों के दर्द का जाफरान ख़ून रिसती खीर में मानों घुल सा गया है। आज़ादी के दौरान सरहद पर घटित ये कथा उन बेघर हुए लोगों के हालातों का विवरण है। जिन्हें न ही आज़ादी मिली न परिवार न घर। फिरभी देश प्रेम के तहत वो पीछे न हटे। मज़हब की दास्ताँ बयां करती ये कहानी सतिंदर की है जो जिंदगी के हर उतार-चढ़ाव से सरोकार रखती है। एक हिंदु परिवार में जन्मी एक मुसलमान ने गोद ली और एक सिख के घर पली-बढ़ी सतिंदर जो ताउम्र अपने वजूद को टटोलती रही। क्या सत्तू अपने संघर्ष से विश्व शांति का संदेश दे पाएगी? क्या उसके आँगन का अमलतास अपनी रौशनी से लोगों को प्रेरित करेगा? जानने के लिए पढ़िये अमलतास : रूह का पश्म
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