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About The Book
Description
Author
.......आंबेडकर जी का सारा लेखन एवं प्रवचन ‘मन’ के द्वारा ही संचालित है। सारे ‘कार्य’ को अन्यों में कैसे संप्रेषित किया जाए यही मुख्य विषय है? मन से कही गई बात मन से ही ग्रहण होती है। ‘भाव’ के तल पर कही गई बात मन (विचार) नहीं ग्रहण कर सकता। हम अपने विषय की चर्चा मन (विचार) के तल से करने जा रहे हैं ‘भाव’ के तल से नहीं। बगैर व्यक्ति के मन के विज्ञान को समझे यह सम्भव नहीं है। व्यक्ति के मन को समझने का क्या अर्थ है? क्या एक एक व्यक्ति के पास जाकर उसके मन को समझना पड़ेगा? नहीं जी यह सम्भव नहीं है। यह तो युक्तिसंगत भी नहीं है। हांलाकि आधुनिक मनोविज्ञान यही कर रहा है। वह तो स्वस्थ मन को भी न समझकर रोगी मन से ही समझने की कोशिश कर रहा है। सम्राट अशोक ने जो चौरासी हजार उपदेश शिलाओं पर अंकित करवाएं हैं वे सूत्रात्मक शैली में ही है। भगवान बुद्ध के उपदेशों को ‘गाथा’ ही नाम क्यों दिया गया है जबकि वे इतिहास हैं। इतिहास क्यों नहीं कहा गया उन्हें? ‘गाथा’ और ‘इतिहास’ में क्या अन्तर है? ‘गाथा’ को ही क्यों महत्व दिया गया है?.......