रामायण गीता जी योग वशिष्ट महाग्रन्थ को पढ़कर प्रवचन सुनकर यह काव्यग्रंथ लिखा गया है इस पुस्तक को लिखने के लिये प्रेरित होने में महामण्डलेश्वर जी स्वामी आशानन्द जी महाराज का विशेष योगदान है उनके प्रवचनों से प्रेरित होकर ही यह पुस्तक लिखी गई है । इस आ/यात्मिक पुस्तक में लिखे गये जीवन के कल्याणपरक विचारों को ग्रहण करने से इन्सान सांसारिकता से ऊपर उठ जाता है मोह वासना आसक्ति से ऊपर उठकर वैराग्य की ओर अग्रसर होता है । अहंकार और चित्त (मैं) के मिट जाने से उस परम को मानव जैसे पा लेता है वह इस मनुष्य जीवन में ही सम्भव है अन्य किसी जीवन में नहीं । एक बार ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है तो वह सदा बनी रहती है इसलिये मनुष्य को जहाँ–जहाँ भी ज्ञान मिले उसे सदा प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिये । इस पुस्तक को सहज और सरल ढंग से लिखा गया है यह सभी को समझ में आ जाने वाला काव्यग्रन्थ है । अत% इसे /यानपूर्वक पढ़कर इस पर मनन करें ।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.