जब हम अनंत कहते हैं तो इसका अर्थ है जो असीम है परम है और जिसका आदि है ना ही अंत है। ये अनंत संज्ञा जिस अनंत को दी जा सकती है वो हैं शिव या आदियोगी। शिव उस सब साकार को कहा जा सकता है जो दृष्टि से स्पष्ट दिखाई देता है और उसे भी हम शिव कह सकते हैं “ वह जो नहीं है”। और शिव वो भी है जो सब चल-अचल जीवन को अपने दामन के बंद आँखो से सम्भाले हुए है। शिव में वो सब विशेषताएँ चरम पर हैं जो किसी मानव में एक भी हों तो वह मानव महामानव प्रतीत है। शिव इस संस्कृति के वाहक हैं शिव स्वयं में धर्म हैं शिव स्वयं में पूर्ण विधि है विधि विधाता और विधि विरोधी भी हैं। शिव हर परम ज्ञानी की आत्म अनुभूति हैं शिव पूर्ण सृष्टि का अद्वैत रूप हैं शिव एक दृष्टिकोण है हर विषम में सम देखने का। शिव को हैं जो हर जीव की अंतिम परम अवस्था है। अनंत पुस्तक एक अद्भुत जीवन अनुभव और कविता संग्रह है जो हर ओर विराजमान शिव को समर्पित है। अगर आप ध्यान से पढ़ेंगे तो ये कविताएँ उच्चतम कोटि के विज्ञान चेतना और भावनाओं का अभूतपूर्व संगम है। या कहें तो शिव का कविता रूपी प्रयागराज है। सो इस पुस्तक या कविताओं को शांत मन से पढ़ना और फिर सोचना। और पूछना स्वयं से कुछ जीवन के गूढ़ प्रश्न स्वयं से “के स्वयंभू कौन हैं” ? “अनंत” के भीतर के निशब्द से उपजे शब्द सार्वभोमिक भावनाएँ और इनका गूढ़ अर्थ आपको एक नया अनुभव और अर्थपूर्ण जीवन प्राप्त करने में सहायक हो। ये मेरी अभिलाषा और शिव से प्रार्थना है आप शिवत्तव को प्राप्त हो।
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