Anapadh Lipi


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About The Book

About the Book: अनपढ़ लिपि विदेह अरविन्द कुमार की आठ हिंदी कहानियों का संकलन! संकलन की पहली कहानी अनपढ लिपि में … जुलाई 1992 में प्रतिष्ठित हिंदी पत्रिका कादंबिनी में छपी थी। सिग्नेचर भी स्वच्छता के प्रति सरकारी महकमे की विद्रूपात्मक मनोदशा का कड़वा चित्रण है। ‘ताकि आप अपने पक्ष में रहें!’ नए प्रकार के कर्मचारियों की मानसिकता को इंगित करता है। ‘फिर फिर वही लोग’ भेड़-बकरियों की तरह दुरुपयोग किए जा रहे जन-समुदाय के विषय में कहानी है। ‘अपार्थाइड’ : वस्तुतः तो शक्तिशाली और निर्बल का भेद ही असली रंग-भेद है। ‘नया वेद’ ‘आज़ादी’ नाम से वही पारम्परिक पद्धति चतुराई पूर्वक ‘नया संविधान’ के नाम से चलाए जाने की पोल-पट्टी खोलती है। ‘पहली कमाई’ कहानी का आख्यान कल्पना से भी अधिक विस्मयकारी है। ‘भगवान को पैसा’ समाज और सरकार दोनों ही की धन के प्रति जो दृष्टि है उस पर तीखा व्यंग्य है। पढते रहिए पचाते रहिए। पसंद आए तो प्रशंसा भी कर दीजिए स्वीकार्य है! About the Author: ‘विदेह’ अरविन्द कुमार 6 अप्रैल 1957 को जन्मे एक छोटे से बसेरे से आए हुए अत्यंत अभावग्रस्त माता-पिता की संतान जिन्हें खाने-कमाने का तो शऊर ख़ैर नहीं था किंतु जो उच्च आदर्शों के साथ जीते थे और व्यवसाय के नाम पर अध्यापन या ट्यूशन देकर आजीविका कमाने की कोशिश करते थे ‘विदेह’ अरविन्द कुमार भौतिकी में स्नातकोत्तर हैं साथ ही एक वरिष्ठ बैंकर भी रह चुके हैं। उनके शौक़ों में पढ़ाई - चाहे वह हिंदी साहित्य हो चाहे अंग्रेज़ी लिटरेचर या कुछ-कुछ संस्कृत साहित्य - मुख्य है जिसमें वह विश्व-साहित्य को प्राथमिकता देते हैं। उनकी रचनाएँ ‘कादम्बिनी’ जैसी लब्ध-प्रतिष्ठ पत्रिकाओं में काफ़ी पहले छप चुकी हैं और उनके अन्य लेख एवं कविताएँ अन्य हिंदी अंग्रेज़ी पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं।
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