अनपढ़ लिपि 'विदेह' अरविन्द कुमार की आठ हिंदी कहानियों का संकलन! संकलन की पहली कहानी 'अनपढ लिपि में …' जुलाई 1992 में प्रतिष्ठित हिंदी पत्रिका 'कादंबिनी' में छपी थी। 'सिग्नेचर' भी स्वच्छता के प्रति सरकारी महकमे की विद्रूपात्मक मनोदशा का कड़वा चित्रण है। ‘ताकि आप अपने पक्ष में रहें!’ नए प्रकार के कर्मचारियों की मानसिकता को इंगित करता है। ‘फिर फिर वही लोग’ भेड़-बकरियों की तरह दुरुपयोग किए जा रहे जन-समुदाय के विषय में कहानी है। ‘अपार्थाइड’ : वस्तुतः तो शक्तिशाली और निर्बल का भेद ही असली रंग-भेद है। ‘नया वेद’ ‘आज़ादी’ नाम से वही पारम्परिक पद्धति चतुराई पूर्वक ‘नया संविधान’ के नाम से चलाए जाने की पोल-पट्टी खोलती है। ‘पहली कमाई’ कहानी का आख्यान कल्पना से भी अधिक विस्मयकारी है। ‘भगवान को पैसा’ समाज और सरकार दोनों ही की धन के प्रति जो दृष्टि है उस पर तीखा व्यंग्य है। पढते रहिए पचाते रहिए। पसंद आए तो प्रशंसा भी कर दीजिए स्वीकार्य है!
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