Andhkar Beet Gaya Aur Bharat Jeet Gaya (अंधकार बीत गया और ... जीत गया )

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भारतवर्ष के गौरव की अनूठी झांकी का एक महत्वपूर्ण अभिलेख है - 'भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास'- (भाग 12345 व 6) लेखक की यह ग्रंथमाला प्रत्येक देशभक्त को झकझोरती है और एक ही प्रश्न उससे पूछती है कि इतिहास की जिस गौरवमयी परंपरा ने हमें स्वतंत्र कराया उसके इतिहास को आप कब स्वतंत्र कराओगे? - भारत के इतिहास को उसकी अपनी परिभाषा और अपनी भाषा कब प्रदान करोगे?लेखक राकेश कमार आर्य हिंदी दैनिक 'उगता भारत' के मुख्य संपादक हैं। 17 जुलाई 1967 को उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर जनपद के महावड़ गांव में जन्मे लेखक श्री आर्य अब तक लगभग 4 दर्जन प्रकाशित/अप्रकाशित पुस्तकें लिख चुके हैं। प्रकाशित पुस्तकों पर उन्हें राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह जी सहित विभिन्न सामाजिक संगठनों की ओर से देश में विभिन्न स्थानों पर सम्मानित भी किया जा चुका है। उनका भारतीय संस्कृति पर गहन अध्ययन है इसलिए लेखन में भी गंभीरता और प्रामाणिकता है। उनका लेखन निरंतर जारी है-पुस्तक को आद्योपांत पढ़ने से ज्ञात होता है कि भारत में विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने का अभियान 712 से 1947 तक के 1235 वर्षीय कालखंड में एक दिन के लिए भी बाधित नहीं हुआ। भारत लड़ता रहा - गुलामी से लूट से अत्याचार से राजनीतिक अन्याय से और अंत में वह जीत कर ही रुका। इसीलिए इस ग्रंथमाला के अंतिम खंड का नाम - 'अंधकार बीत गया और भारत जीत गया' - रखा गया है।भारत क्यों लड़ता रहा? - केवल इसलिए कि गुलामी लूट अत्याचार निर्ममता निर्दयता तानाशाही राजनीतिक अन्याय अधर्म और पक्षपात उसकी राजनीति और राजधर्म के कभी भी अंग नहीं रहे।यहां तो राजनीति और राजधर्म का पदार्पण ही समाज में आयी इन करीतियों से लड़ने के लिए हुआ था। इस प्रकार भारत की राजनीति का राजधर्म शुद्ध लोकतांत्रिक था। शुद्ध लोकतांत्रिक समाज और लो
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