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About The Book
Description
Author
रमेश कँवल ग़ज़ल की दुनिया ख़्वाबों की दुनिया से भी ज़्यादा फैली हुई है। कोई ग़ज़ल छोटी बहर में है तो कोई बड़ी बहर में है। 2 रुक्न से लेकर 16 -16 रुक्न तक की ग़ज़लें कही गयी हैं। लेकिन एक रुक्न की ग़ज़लें इक्का-दुक्का ही देखने में आती हैं। जी में आया क्यों नहीं मात्र एक रुक्नी ग़ज़लों का ही एक ग़ज़ल संग्रह मंज़रे-आम पर लाया जाय । लिहाज़ा दोस्तों से गुज़ारिश की । कुछ दोस्तों ने प्रोत्साहित करने में आनाकानी की तो कुछ ने मेरी हौसला अफज़ाई की और देखते ही देखते 150-200 ग़ज़लें व्हाट्सअप और मेल पर दस्तक देने लगीं । एक रुक्नी ग़ज़लें कहना आसान नहीं । एक रुक्न के दो मिसरों (शेर) में पूरी बात कहना बहुत मुश्किल फ़न है। लगता है बात आधी अधूरी रह गयी । इस ग़ज़ल संग्रह के बेशतर शायरों ने एक रुक्न में भी बेहतरीन अशआर तलाश कर लिए हैं। इस ग़ज़ल संग्रह के लिए 7 बहरों का इन्तख़ाब किया गया । मुतदारिक मुतक़ारिब रमल हजज़ रजज़ कामिल और वाफ़िर। आधे से ज़्यादा ग़ज़लकारों ने सातों अर्कान पर ख़ूबसूरत ग़ज़लें कही हैं तो कुछ शायर एक-दो रुक्न में ही अनूठी ग़ज़लें भेज सके । आइये इन अनूठी एक रुक्नी ग़ज़लों का लुत्फ़ उठाइये; रसास्वादन कीजिए और मुझे अपनी गिरांक़द्र राय से नवाज़ने की इनायत करिए । पटना 2 जून2022 स्नेहाकांक्षी रमेश कँवल मृदुभाष : 878 976 1287