Antim Sataren


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE

Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
Fast Delivery
Fast Delivery
Sustainably Printed
Sustainably Printed
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.

About The Book

कथाकार मोहन राकेश के साथ बिताए अपने समय को लेकर अनीता राकेश के संस्मरणों की दो पुस्तकें हिन्दी पाठकों की प्रिय पुस्तकों में पहले से शामिल हैं—चन्द सतरें और’ तथा सतरें और सतरें’। उसी शृंखला में यह उनकी अगली पुस्तक है जिसे उन्होंने अन्तिम सतरें’ नाम दिया है। इस पुस्तक में उन्होंने जितना अपने बीते समय का अवलोकन किया है उतने ही चित्र अपने वर्तमान से भी प्रस्तुत किए हैं। बीते दिनों की यादों में जहाँ राकेश के साथ हुई कुछ झड़पें उन्हें याद आती हैं वहीं राकेश की माताजी के साथ गुजरे अपने सबसे पूर्ण सबसे आर्द्र क्षणों को भी वे याद करती हैं। बहैसियत लेखक राकेश जब अपने पति और पिता रूप के साथ लगभग नाइंसाफी पर उतर आते तब उन्हें अपने सिर पर अम्मा का ही साया मिलता राकेश जब अपने कमरे का दरवाजा बन्द कर इंसानी रिश्तों की पेचीदगियों को सुलझाने की लेखकीय कोशिशें कर रहे होते अनीता जी अम्मा के स्नेह के उसी साये तले रहतीं खातीं-पीतीं सोतीं बीमार होतीं और फिर ठीक होतीं। इस समय वे अपने एक बेटे के साथ दिल्ली में रहती हैं। इस पुस्तक में राकेश और अम्मा के अलावा सबसे ज्यादा जगह उसी को मिली है।यह पुस्तक राकेश के व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं से हमें परिचित कराती है लेकिन उससे ज्यादा इस समय में जबकि साहित्य और पुस्तकों का बाजार बाकी बाजारों से मुकाबला करने के लिए तरह-तरह की मुद्राओं से लगभग खिजा रहा है लेखकों और लेखकों के आश्रितों की स्थिति पर हमें सोचने पर विवश करती है।
downArrow

Details