मौलिकताओं के अद्यातन सामाजिक विषमताओं को संजोए हुये उपन्यास एक प्रेम कहानी है। जिसमे दावे से नहीं कह सकते की वे प्रेमी युगल है। वे दोनों परस्पर आकर्षित होकर भी अपने प्रेम को मुखर नहीं करते। इन पात्रों की प्रेम आसक्ती एकल मौन संवाद ही उनके प्रेमी होने का दावा करता है कि वे प्रेमी है उनके प्रेम का गोपन व अनिश्चत के धुंधलके की कहानी का अब प्रगट होता है जब राकेश अपनी अर्द्ध मूर्छित विकलांगता की ओर बढ़ती अपरिचित प्रेमिका विवाह करने की बात करता है। ऐसे ही तमाम मोडों पर ठहस्ती आगे बढ़ती हुई कथा प्रेमी के अपरिचित रहते हुये गहनता की ओर अग्रसर है मौलिक विचारों और सामाजिक विक्रतियों तथा राजनैतिक व्यवस्था व दार्शनिक सवालों में खोई हुई कुछ कहती बढ़ती है इस उपन्यास में
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