मुखर्जी परिवार ---------- ऊर्मि ! मेरे बचपन की सहेली ।ऊर्मि अपने नाम के अनुरूप ही थी । समुद्र की लहरो की तरह कभी शांत और कभी ऊर्जामय ।ऊर्मि बेहद मस्त मौला थी ।बेबाक़ और एक अजब तरह के आकर्षण की स्वामिनी ।हम दोनो की दोस्ती मशहूर थी ।कई बार हम दोनो बचपन की बेवक़ूफ़ी भरी बातें याद कर के खूब हँसते थे।सात साल की उम्र तक मैं और ऊर्मि एक ही मुहल्ले में एक घर छोड़ कर रहते थे ।छोटे में जब खेलते खेलते रात हो जाती तो याद आता की घर जाना पड़ेगा नही तो डाँट पड़ेगी ।ऊर्मि कहती तुम पहले मुझे घर छोड़ दो ।मैं उसे उसके घर के गेट के पास छोड़ने जाती । फिर मैं कहती मुझे छोड़ो ।वह मुझे मेरे घर के गेट के पास छोड़ने आती ।और यह सिलसिला दस बारह बार चलता ।फिर हम दोनो घरों के बीच में खड़े हो जाते और अपने -अपने घरों की तरफ़ दौड़ लगा लेते ।जब भी कभी बचपन की मासूम हरकतें याद आती है अजब सी गुदगुदी का अहसास होने लगता है ।बचपन में लगता है कब बड़े होगे और बड़े होकर समझ में आता की बचपन के दिन सबसे प्यारे होते है ।न कोई चिंता न कोई दुनियादारी से मतलब ।चैन की नींद और चैन की ज़िंदगी।
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