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About The Book

शाहिद जमाल की शायरी के रंग और ढंग का सवाल है तो वो एकदम अलाहिदा है। इनके यहाँ ज़िन्दगी का मुशाहिदा अपने ज़ाती तज्रबात से निकलता है। शायरी के किसी ख़ास दौर का असर इनकी ग़ज़लों में नहीं दिखायी देता बल्कि इनकी शायरी में ज़िन्दगी के ख़ास दौर का असर भरपूर दिखायी देता है। यही वज्ह है कि ज़ाती ज़िन्दगी के मसाइल से लेकर सियासी और समाजी उतार-चढ़ाव के इज़हार इनकी शायरी में एक हस्सास तबीयत इंसान के एहसासात की नुमाइन्दगी करते नज़र आते हैं। घर-परिवार की बातों से लेकर दीनी और फ़लसफ़ियाना इज़हार के तमाम मज़मून ये अपने आसपास से उठाते हैं और उसे अपने आईनाख़ाने से गुज़ारकर शायरी तक ले जाते हैं। इस पूरी काविश में कमाल तो ये है कि शाहिद जमाल किसी भी बात को शायरी का पैरहन पहनाने में पूरी तरह कामयाब भी होते हैं। आप इनकी ग़ज़लों से गुज़रते हैं तो किसी सिन्फ़े-सुख़न से नहीं गुज़रते बल्कि इंसानी ज़िन्दगी के एहसासात की तस्वीरों से भरी एक वसीअ नुमाइश के किसी गलियारे से गुज़रते हैं। इस गलियारे में तस्वीरों के मआनी बताने के लिए आपके साथ कोई और नहीं बल्कि ख़ुद शाहिद जमाल ही होते हैं। आप ख़ुद पढ़ें और देखें कि लफ़्ज़ किस तरह एहसास की तस्वीर में रंग भरते हैं।
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