अपनी संतान को चांटा मारना सीखें (ताकि वो दुनिया से चांटा न खाए) एस.एल.ए.पी. शब्द यहां चिह्रनात्मक रूप में लिया गया है। आज पूरा विश्व एशियाई मूल के अनुशासित अभिभावकों एवं कड़ी मेहनत को सर्वोपरि मानने वाली संस्कृति का कायल है।प्रश्न उठता है- क्या हम अपने बच्चों को ज्यादा लाड़-प्यार देकर उनकी इस श्रेष्ठता को कम कर रहे हैं? यह पुस्तक इन्हीं सब विषयों का ज्ञान कराती है।यहां पर मुद्दा यह है कि आप किस आधार पर बच्चे का अभिभावक बनने का दावा करते हैं? वीर्य का दान या अण्डा कोष में भ्रूण को बड़ा करना कोई बड़ी बात नहीं है एक सीरींज भी यह काम कर सकता है (टेस्ट ट्यूब बेबी) क्या सीरींज यह कह सकता है वह अभिभावक है? अजीब-सा लगता है? हां पर यह उतना ही अजीब है जितना यह माना जाना कि सिर्फ बच्चा पैदा करने से ही व्यक्ति अभिभावक बन जाता है।याद रखें श्रेष्ठ उत्पाद के लिए मेहनत करनी पड़ती है। उसी तरह से बच्चों को अच्छा बनाने में तथा उनके जीवन में श्रेष्ठता लाने में अभिभावक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।इस पुस्तक की आंच को सहने के लिए तैयार हो जाएं यह उन अभिभावकों के लिए है जो अपने बच्चों को श्रेष्ठ व सर्वगुण संपन्न बनाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। डॉ. सुनील वैद
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