Apraadhneeti

About The Book

समय का पहिया घूमता रहा है और रहेगा..! आदिम युग से राजशाही साम्राज्यवाद उपनिवेशवाद यहाँ तक कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था तक का सफ़र देश-प्रदेश समाज के लिये काफ़ी संघर्षों भरा कठिन समय रहा है। यहाँ सशक्त बनाम कमजोरशोषक बनाम शोषित महत्वकांक्षी बनाम जिजीविषा अहं बनाम अस्तित्व के बीच के संघर्ष का एक वृहत दस्तावेज मौजूद है। इस संघर्ष ने हर बार एक नये आयाम को जन्म दिया। नफ़ा-नुकसान की बात की जाये तो पता चलता है कि हमेशा सशक्त वर्ग का पलड़ा ही भारी रहा। विपरीत इसके सर्वहारा वर्ग हताश भावना का शिकार बनता गया। अपनी भावी पीढी के लिये उसे अनगिनत कुर्बानियाँ देनी पड़ी। हाँ..समय की माँग..! या यूँ कहें कि अपने वजूद और जमीर को बचाये रखने की खातिर इस तबके ने अपने-आप को गला-खपाने से गुरेज नहीं किया। वहीं दूसरी ओर प्रतिद्वंदी तबका पाखंड के सहारे हमेशा पतली गली से निकलने की फ़िराक में रहता। अपने को सही साबित करने हेतु हर किसी पर लांछन लगाने से पीछे नहीं हटा। इसे सत्य और असत्य के पैमाने से भी आँका जा सकता है।
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