Arghya Daan Ki Tripti (अर्घ्य दान की तृप्ति)

About The Book

मैंने अपने देश और समाज को एक सूर्य माना है सूर्य की किरणें जब अत्यधिक उष्ण हो जाएँ तो जन-जीवन के लिये कष्टकारी होती हैं और चहुँ ओर हाहाकार मच जाता है। उसी प्रकार समाज में विद्यमान बहुत सामान्य किन्तु बहुत ज्यादा गंभीर विषय जैसे- देशप्रेम अनुशासन शिक्षा समय जीवन को जीने की कला गुरु की महत्ता शोर प्रदूषण फैशन नारी सशक्तिकरण प्रतिस्पर्धा आदि जिनमें भटकाव से भारतीय समाज के स्वरूप में फिसलन अनुभव कर ऐसे विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है।<br>और सौभाग्य मेरा कि इस कृति के अधिकांश आलेख आकाशवाणी रायपुर से संपूर्ण छत्तीसगढ़ में प्रसारित किये जा चुके हैं तो कुछ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं तो एक-दो का पाठ मंच से भी मेरे द्वारा किया जा चुका है। अभिप्राय कि इसमें वर्णित प्रायः-प्रायः समस्त आलेख प्रसारित प्रकाशित और प्रचारित हैं और यह कृति उनका संकलित संग्रह मात्र है जोकि विचारों के विस्मरण से रोकने और सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में जनमानस को प्रेरित करने के उद्देश्य से प्रकाशित करने का पुनश्च प्रयास है।
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