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About The Book
Description
Author
प्रेम का मार्ग मस्ती का मार्ग है। भक्ति अर्थात एक अनूठे ढंग का पागलपन। तर्क नहीं तर्कसरणी नहीं प्रीति का एक सेतु। बुद्धि से तलाश नहीं होती परमात्मा की हृदय से होती है। बुद्धि से जो खोजते हैं खोजते बहुत पाते कुछ भी नहीं। हृदय से खोजो भी न सिर्फ पुकार उठे सिर्फ प्यास उठे जहां बैठे हो वहीं परमात्मा का आगमन हो जाता है। प्रेमी को खोजने नहीं जाना पड़ता; परमात्मा खोजता हुआ चला आता है। भक्ति के शास्त्र का यह सबसे अनूठा नियम है। जगजीवन के सूत्र इस नियम से ही शुरू होते हैं। लेकिन यह बात बड़ी उलटी है। ज्ञानी खोज-खोज कर भी नहीं खोज पाता और भक्त बिना खोजे पा लेता है। इसलिए बात थोड़ी बेबूझ है। दीवानगी की है पागलपन की है। पर प्रेम पागलपन का ही निचोड़ है। जो न काबे में है महदूद न बुतखाने में खोजने वाले जाएंगे कहां? या मंदिर जाएंगे या मस्जिद जाएंगे। खोजने वाला जाएगा ही बाहर। खोज का मतलब ही होता है--बाहर बहिर्यात्रा। खोजने वाला चारों दिशाओं में भटकेगा। जमीन में खोजेगा आकाश में खोजेगा। जो न काबे में है महदूद न बुतखाने में और जो न मंदिर में सीमित है और न मस्जिद में न काबा में न कैलाश में उसे तुम कैसे खोजोगे काबा में कैलाश में? उसे खोजने गए उसी में भूल हो गई। उसे खोजने गए उसमें ही तुमने पहला गलत कदम उठा लिया। खोजने तो उसे जाना पड़ता है जो कहीं महदूद हो कहीं सीमित हो जो किसी दिशा में अवरुद्ध हो जिसका कोई पता-ठिकाना हो जिसकी तरफ इशारा किया जा सके कि यह रहा अंगुली उठाई जा सके। परमात्मा तो सब जगह है। इसलिए उसका कोई पता तो नहीं है! न उत्तर न पश्चिम न पूरब। परमात्मा पूरब में नहीं है पूरब परमात्मा में है। न परमात्मा पश्चिम में है पश्चिम परमात्मा में है। परमात्मा वहां नहीं है परमात्मा यहां है। तुम परमात्मा को खोजने जाते हो--उसी में भटक जाते हो; क्योंकि तुम परमात्मा में हो। जैसे चली मछली सागर की खोज में! और सागर में है मछली। खोज ही भटकाएगी। खोज ही न पहुंचने देगी। जो न काबे में है महदूद न बुतखाने में हाय वो और इक उजड़े हुए काशाने में जिस दिन उससे मिलन होता है उस दिन बड़ी हैरानी होती है। जो सुंदर से सुंदर मंदिरों में नहीं पाया जिसे परंपरा से पूजित तीर्थों में नहीं पाया जिसे उसे अपने टूटे घर में पाया! —ओशो
इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:
मनुष्य क्या है? प्रेम प्रार्थना निर-अहंकार अनुगमन अनुसंधान विश्वास स्वास्थ्य समर्पण राजनीति