Arziyaa

About The Book

दो लफ्ज़ तमन्ना है क्या यह बतलाता तुम्हें शब्द चुन पाता तो बयाँ कर पाता तुम्हें ज़िक्र उसका करना थोड़ा मुश्किल है मेरे लिए मैं खुद समझ पाता तो समझाता तुम्हें एक भावना जिसे आप किसी के साथ साझा करना तो चाहते हैं बताना भी चाहते हैं कि आप क्या महसूस कर रहे हैं मगर जब कोई उसे सुनने और समझने में असमर्थ रहता है तब आप उन भावनाओं को खुद से साझा करने का एक प्रयास करते हैं और जब यह संभव होता है तो एक कविता उभर कर आती है और जिसे आप मेरी अनुभूतियाँ समझ सकते है इस पुस्तक में जो बातें और भावनाएं है की जो मैं किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पाया शायद आप समझे बस इसी चाहत में मेरी ‘अर्ज़ियाँ’ आपके समक्ष प्रसार कर रहा हूँ रहूं गुमसुम तुमसे अगर बात ना हो पाए तो मेरे भीतर से कोई चीखता रहता है मगर
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