Ashant Chetna

About The Book

दरवाजा सरीखी औरते काव्य संगह नही संवेदनाओं के उन सभी पहलुओं को उद्घाटित करता चला गया जो एक स्ली की दिनचर्या का हिस्सा है। स्त्री जीवन में कब कौन-सी परेशानी दस्तक दे दे उसे नहीं पता। वह सदैव चौकनी सिपाही की तरह प्रत्येक परिस्थिति से जूझने को तत्पर रहती है उसका मर्ज ही उसका मरहम कब बन जाता है यह समझ नहीं पाती है। अब वह लिख पाने का जी साहस जुटा पाई है यह उसकी उत्कट जिजीविषा का ही परिणाम है। आज तक सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों का श्रेय पितृसत्ता को ही जाता रहा है यहाँ तक कि लेखक में भी उसी की धूम रही है जिसके कारण उठाने मान-सम्मान बटोरा है और जैडो ही एक रात्री कलम उठाती है तो उसकी कलम में घूंघट लग जाते हैं। यह जब भी लिखने की सोचती है पहले ही शीट मचने लगता है क्योंकि उसकी कलम वह सत्य उद्घाटित करती है जिस पर पितृसत्ता का सिंहासन रखा है। अब वह सिंहासन हिलने लगा है। स्त्री को देह ही समझा और उसे देह ही बनाये रखना पूटा सामाजिक षड्यंत्र है। क्यों खी जीवन केवाल देह से ही परिभाषित हो? क्यों वह केवल गुजरने के लिए दुनिया में आवे? क्यों रोज सुबह उसले पड़े हुए अक्षवार-सा व्यवहार होता है? उसके भीतर का शीट उसे संघर्ष करने के लिये प्रेरित करता है। जिंदगी जीने की जद्दोजहद में प्रतिदिन उसकी भावनाओं के मोती बिखरते हैं जिनको वह टोज चुनती है फिर किसी उम्मीद ही माला बजाती है। उसकी यह प्रक्रिया ताउम्र चलती रहती है। संघर्ष करती औटते धीरे-धीरे दरवाज़ा सीखी होती जा रही है। खुल रही है वे श्री दरवाजे की तरह धीरे-धीरे। विद्रोध करने लगी है अपनी पांद-नापसंद बताने लगी है। जीवन साथना के पथ पर अब वे फूल-सी खिलना चाहती हैं। अक्क से जलने की बनाय धीरे-धीरे बदलाव का अलाव सुलगाने लगी हैं। वह अब अपने खाली स्थान को भरना चाहती है। उनके ऐसा सोचने भर से ही पितृसतात्मक समाज की जीव हिलने लगी है। इसी पितृसत्ता के महान बनने की प्रक्रिया में क्या जाने कितनी रत्नावली आत्मत्याग करके तुलसीदास बना रही है परन्तु विडम्बना देखिए याद सदैव तुलसी सहीखे महान बनी पितृसता को किया जाता है। इस अपूर्ण प्रसंग की सप्रसंग व्याख्या करते हुए हम देखते हैं कि स्त्री की आत्मा की विदाई उसके बहीर हो पहले हो जाती है। चन्द महिलाओं को महीन सोच वाले पुरुष मिलने हो उत्री जाति का उदार नहीं हो सकता। उनके हिटसे का आसमान नहीं मिला है अभी उन्हें और उसके लिए उन्हें उस सशक्त बहुलापे की आवश्यकता है जी इसकी जड़ों की मजबूत बनायेगा। सांझ के इंतजार टी पहले हम स्त्री के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं। अपनी भावनात्मक कमजोटी की जब वह ताकत बना लेगी तब ही उसके हिस्सों में चाँद चमकेगा सूर्य भी दमकेगा और मुक्ति का दरवाज़ा भी खुल जायेगा। अथ उही निडर होने की आवश्यकता है फिट आँसू स्वयं सिमटकर अमूल्य मोती बन जाएंगे।
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