Ashok arora kii pratinidhi Gazalen


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About The Book

अशोक अरोरा जी जिन्हें मैं पापा बोलती थी हालाँकि वक़्त के चक्रव्यूह में फँसकर हम कभी एक दूसरे से मिल नहीं पाये फिर भी बहुत अनोखा था हमारा रिश्ता । मुझे अच्छी तरह याद है कि उस दिन फादर्स डे था जब उन्होनें मुझे कॉल किया था और बहुत ही प्यार से पूछा बेटा जी आप मुझे फादर्स डे पर विश नहीं करोगे । उनका प्यार और उनकी आत्मीयता दिल की गहराइयों को छू गई और इस तरह परोक्ष रूप से मैं उस घर की बड़ी बेटी बन गई । ये मेरा दुर्भाग्य था कि जब वो मम्मी के साथ मुझसे मिलने आये तो बेटे को चिकेन पॉक्स होने की वजह से मैं उनसे मिल नहीं पाई तब मुझे तनिक भी आभास नहीं था कि वक़्त के क्रूर हाथों के वो शिकार हो जायेंगे । पापा बहुत ही सहज और सरल हृदय के व्यक्ति थे । मैं उनसे तो नहीं मिल पाई लेकिन ज़िन्दगी से एक सबक पाया कि वक़्त गुज़र जाने पर पछताने से बेहतर है कि उस वक़्त को बांध लो । वो अपने पीछे एक ममतामयी माँ और तीन प्यारी प्यारी बहनें दे गए जिनसे मैं उस वक़्त तक मिल नहीं पाई थी । ऐसे में एक दिन जब छोटी अंजली का कॉल आया उसकी बेटी के जन्मदिन पर आमंत्रण के लिए तो मैंने सोच लिया कि अब फिर कोई गलती नहीं होगी । वहाँ जाकर मैं सबसे मिली और एक पल के लिए भी मुझे ये नहीं लगा कि मैं सबसे पहली बार मिल रही हूँ । उसी दिन पापा की रचनाओं की चर्चा मैनें माँ से की क्योंकि पापा अक्सर मुझसे यही कहते थे कि बेटा जी हम दोनों मिलकर छोटी-छोटी रुबाइयों का एक कलेक्शन निकालेंगे । मगर उनकी ये ख्वाहिश उस वक़्त पूरी नहीं हो पाई । अब उनकी ये ख्वाहिश हम सब की जिम्मेदारी थी । - रश्मि अभय
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