Ashtavakra Mahageeta Bhag 1-9 (अष्टावक्र महागीता भाग : 1-9) (Set of 9 Books)

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स्वान्तः सुखाय... सुख के लिए सुनो। उस सुख में सुनतेसुनते जो चीज तुम्हें गदगद कर जाए उसमें फिर थोड़ी और डुबकी लगाओ। मेरा गीत सुना उसमें जो कड़ी तुम्हें भा जाए फिर तुम उसे गुनगुनाओ; उसे तुम्हारा मंत्र बन जाने दो। धीरे-धीरे तुम पाओगे कि जीवन में बहुत कुछ बिना बड़ा आयोजन किए घटने लगा।अष्टावक्र के ये सूत्र अंतर्यात्रा के बड़े गहरे पड़ाव-स्थल हैं। एक-एक सूत्र को खूब ध्यान से समझना।<br>ये बातें ऐसी नहीं कि तुम बस सुन लो कि बस ऐसे ही सुन लो। ये बातें ऐसी हैं कि सुनोगे तो ही सुना। ये बातें ऐसी हैं कि ध्यान में उतरेंगी अकेले कान में नहीं तो ही पहुंचेंगी तुम तक। तो बहुत मौन से बहुत ध्यान से...।<br>इन बातों में कुछ मनोरंजन नहीं है। ये बातें उन्हीं के लिए हैं जो जान गए कि मनोरंजन मूढ़ता है। ये बातें उनके लिए हैं जो प्रौढ़ हो गए हैं। जिनका बचपना गया; अब जो घर नहीं बनाते हैं; अब जो खेल-खिलौना नहीं सजाते; अब जो गड्डा-गुड्डियों का विवाह नहीं रचाते; अब जिन्हें एक बात की जाग आ गई है कि कुछ करना है-कुछ ऐसा आत्यन्तिक कि अपने से परिचित हो जाएं। अपने से परिचय हो तो चिंता मिटे। अपने से परिचय हो तो दूसरा किनारा मिले। अपने से परिचय हो तो सबसे परिचय होने का द्वार खुल जाए।<br>हरि ओम् तत् सत्भय से मुक्त हो कर अपूर्व जीवन के फूल खिलते हैं। भय से दबे रह कर सब जीवन की कलियां बिन खिली रह जाती हैं पंखुड़ियां खिलती ही नहीं। भय तो जड़ कर जाता है। तो मैं जानता हूं तुम्हारी तकलीफ। लेकिन तुम भय से बचने के लिए उत्सुक हो तो कभी न बच पाओगे। मैं तुमसे कहता हूं : भय को जानो देखो- है; जीवन का हिस्सा है। आंख गड़ा कर भय को देखो साक्षात्कार करो। जैसे-जैसे तुम्हारी आंख खुलने लगेगी और भय को तुम ठीक से देखने लगोगे पहचानने लगोगे- कहां से भय पैदा होता है- उतना ही उतना भय विसर्जित होने लगेगा दूर हटने लगेगा। और एक ऐसी घड़ी आती है अभय की जब कोई भय नहीं रह जाता। मृत्यु तो रहेगी शरीर मरेगा मन बदलेगा सब होता रहेगा लेकिन तुम्हारे अंतस्तल में कुछ है शाश्वत-सनातन छिपा जिसकी कोई मृत्यु नहीं। उसका थोड़ा स्वाद लो। साक्षी में उसका स्वाद मिलेगा। उसके स्वाद पर ही भय विसर्जित होता है। और कोई उपाय नहीं है।
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