तुम मुझे जब सुनो तो ऐसे सुनो जैसे कोई किसी गायक को सुनता है। तुम मुझे ऐसे सुनो जैसे कोई किसी कवि को सुनता है। तुम मुझे ऐसे सुनो कि जैसे कोई कभी पक्षियों के गीतों को सुनता है या पानी की मरमर को सुनता है या वर्षा में गरजते मेघों को सुनता है। तुम मुझे ऐसे सुनो कि तुम उसमें अपना हिसाब मत रखो। तुम आनंद के लिए सुनो। तुम रस में डूबो। तुम यहां दुकानदार की तरह मत आओ। तुम यहां बैठे-बैठे भीतर गणित मत बिठाओ कि क्या इसमें से चुन लें और क्या करें क्या न करें। तुम मुझे सिर्फ आनंद-भाव से सुनो। स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा! स्वान्तः सुखाय... सुख के लिए सुनो। उस सुख में सुनतेसुनते जो चीज तुम्हें गदगद कर जाए उसमें फिर थोड़ी और डुबकी लगाओ। मेरा गीत सुना उसमें जो कड़ी तुम्हें भा जाए फिर तुम उसे गुनगुनाओ; उसे तुम्हारा मंत्र बन जाने दो। धीरे-धीरे तुम पाओगे कि जीवन में बहुत कुछ बिना बड़ा आयोजन किए घटने लगा।
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