Ashtavakra Mahageeta Bhag-II : Dukh Ka Mool (अष्टावक्र महागीता भाग-2 : दुःख का मूल)
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अष्टावक्र की गीता को मैंने यूं ही नहीं चुना है। और जल्दी नहीं चुना है। बहुत देर करके चुना है- सोच-विचार के। दिन थे जब मैं कृष्ण की गीता पर बोला क्योंकि भीड़-भाड़ मेरे पास थी। भीड़-भाड़ के लिए अष्टावक्र गीता का कोई अर्थ न था।<br>बड़ी चेष्टा करके भीड़-भाड़ से छुटकारा पाया है। अब तो थोड़े-से विवेकानंद यहां हैं। अब तो उनसे बात करनी है जिनकी बड़ी संभावना है। उन थोड़े-से लोगों के साथ मेहनत करनी है जिनके साथ मेहनत का परिणाम हो सकता है। अब हीरे तराशने हैं कंकड़-पत्थरों पर यह छैनी खराब नहीं करनी। इसलिए चुनी है अष्टावक्र की गीता। तुम तैयार हुए हो इसलिए चुनी है।
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